तालिबान का सपना फिलहाल नहीं हो सकेगा पूरा

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अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान के आगे सबसे बड़ी चुनौती अपनी सरकार को दुनियाभर में मान्यता दिलाना है। इसके लिए सबसे अहम मंच है संयुक्त राष्ट्र, जहां पाकिस्तान और चीन के रूप में पहले से ही तालिबान के पैरोकार मौजूद हैं। खुद तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को चिट्ठी लिखकर यूएन जनरल एसेंबली में अफगान का प्रतिनिधित्व करने देने की मांग की थी। हालांकि, तालिबान का यह सपना फिलहाल पूरा नहीं हो सकेगा, फिर चीन और पाकिस्तान भी कितना ही जोर क्यों न लगा लें।

इस साल भी अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के नुमाइंदे ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। मंगलवार को पूर्व अफगान सरकार के इन्हीं नुमाइंदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के भाषण में हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं, जब तक क्रीडेंशियल कमेटी तालिबान के आवेदन पर फैसला नहीं कर लेती तब तक संयुक्त राष्ट्र में अफगान का प्रतिनिधित्व पुराना स्टाफ ही करता रहेगा।

तालिबान की चिट्ठी पर दरअसल, 9 सदस्यों वाली क्रीडेंशियल कमेटी को फैसला लेना है और 27 सितंबर से इस कमेटी की बैठक हो पाना असंभव माना जा रहा है और अगर कमेटी की बैठक हो भी जाती है तो इस विवाद का हल सिर्फ एक या दो दिन में निकालना लगभग नामुमकिन है। मौजूदा समय में इस कमेटी के सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, बाहामास, भूटान, चिली, नामिबिया, सिएरा लियोन और स्वीडन हैं।

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