अर्द्धशासकीय कर्मचारियो के वेतन की राशि का दुरपयोग

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जैजैपुर
अर्धशासकीय कर्मचारियों के वेतन देने के लिए निर्धारित मुद्रांक शुल्क की राशि कही सीईओ कक्ष को सजाने मे तो कही टेन्ट हाऊस, चाय नाश्ता तो कही अन्य दीगर कामो मे  खर्च की जा रही है और कर्मचारियों मे भूखे मरने की नौबत आ गयी है। कर्मचारी हित की बात करने वाले जनप्रतिनिधियों को इस मसले पर ध्यान दिलाने के लिए न जाने किस धमाके का इंतजार है। मिली जानकारी के अनुसार अकलतरा सहित जिले के अनेक विकास खंडो मे अर्धशासकीय कर्मचारियों के वेतन के लिए शासन को मुद्रांक शुल्क से मिलने वाली राशि का 2 प्रतिशत मिलता है और यह राशि पहले कर्मचारियों की संख्या के अनुसार आबंटित किया जाता है। अब प्रत्येक जनपद मे 20 लाख की राशि भेजी जा रही है और इसी राशि से अर्धशासकीय कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है परंतु अकलतरा जनपद पंचायत मे पिछले 18 माह से वेतन के लाले पडे है। इस विषय मे जब अखबारों मे छपा तब जिला पंचायत से आयी राशि 20 लाख वेतन के रुप मे दी गयी। कर्मचारियों के अनुसार इस राशि से हमे मात्र पांच माह का वेतन ही मिल पाया है। अब भी हमे 18 माह का वेतन अप्राप्य है।

आखिर मुद्रांक शुल्क की राशि कहाँ खर्च हो रही है
जिला पंचायत सीईओ से बात किये जाने पर उन्होंने बताया कि जैसे आबंटन आता वैसे ही अर्धशासकीय कर्मचारियों के वेतन के लिए यह राशि भेज दी जाती है। कुछ दिनो पूर्व ही जनपद पंचायत अकलतरा यह राशि लगभग 20 लाख भेज दी गयी है। बताया जा रहा है कि जनपद सीईओ के द्वारा मुद्रांक शुल्क की.उपयोगिता न बता पाने के कारण यह राशि जिले से रोक दी गयी है यही कारण है कि कर्मचारियों का वेतन शत प्रतिशत देने मे सीईओ अकलतरा असमर्थ है।

कर्मचारियों को किस अपराध की सजा है
अर्धशासकीय कर्मचारियों ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि हम अपना घर इस दूसरे शहर.मे कैसे चला रहे है , हमे ही पता है। बच्चों की फीस नही पटी है। किराने सामान का पिछला बिल कई महीनों से न चुकाने के कारण किराना दुकान वाला ऐसे चेहरा बनाता है मानो भिखारी को.कई बार दुत्कारे जाने के बाद भी आ गया हो। गलती किसी और की सजा भुगतनी पड़ रही है हमें। ये कैसा अंधेर है और इस विषय.पर.क्यो कोई ध्यान.नही देता। हम आखिर किसके पास अपना दुखडा सुनाने जाये।

किसी की अदा ठहरी ,किसी की जान गयी
कुछ लोगो का यह भी कहना है कि जनपद पंचायत सीईओ ने मुद्रांक शुल्क की राशि अनाप-शनाप खर्च कर दी है और अब हिसाब नही दे पा रहे है तो कुछ लोगो का कहना है कि सीईओ ने यह राशि अपने चेम्बर को सजाने मे खर्च किया है। चाहे जो हो पर कर्मचारियों का वेतन रोका जाना अतार्किक  ही नही घोर अन्याय है क्योंकि मुद्रांक शुल्क की राशि का दुरुपयोग सी ई ओ ने किया है तो वसुल भी उन्हीं से की जानी चाहिए न कि कर्मचारियों का वेतन रोककर ,और जैसा कि कुछ लोगों का कहना है कि सीईओ जनपद पंचायत अकलतरा इसकी उपयोगिता नही बता पा रहे है तो जिला पंचायत सीईओ को इसकी जांच करा कर यह राशि जनपद पंचायत सीईओ से वसुल करनी चाहिए।

मस्तुरी जनपद पंचायत का मामला
बिलासपुर जिले के विकासखंड मस्तुरी मे भी इसी तरह की शिकायत आ रही है। बताया जा रहा है कि जनपद पंचायत मस्तुरी मे मुद्रांक शुल्क की राशि को ग्राम सुराज के दौरान टेंट हाऊस जैसे और अन्य गैर जरूरी कामो मे खर्च की गयी। टेंट हाऊस का खर्च सुनकर क्लारेंनटाइन सेंटर मे घपला करने वाले भी शरमा जाये मस्तुरी जनपद पंचायत के सीईओ द्वारा एक साल मे ग्राम सुराज का कैम्प लगाने मे 50 लाख के लगभग राशि खर्च की गयी है। मुद्रांक शुल्क की राशि के लिए हर साल आडिटर आते है परंतु सिवाय आपत्ति लगाने के कुछ नही कर.पाते है। एक साल मे 50 लाख की राशि खर्च सुनकर ऐसा लगता है मानो मस्तुरी जनपद पंचायत ने लोक सुराज या ग्राम सुराज नही बल्कि राम सुराज चलाया हो और इस ग्राम सुराज की गंगा मे पूरा मस्तुरी जनपद स्नान कर अर्धशासकीय कर्मचारियों के वेतन का पिंडदान कर दिया हो।

अर्धशासकीय कर्मचारियों के प्रति इतनी लापरवाही क्यो
प्रशासन आखिर अपने.कर्मचारियो के लिए इतना लापरवाह क्यो है। जिस वेतन के लिए ये कर्मचारी अपना हाड़- मास गला रहे है उन्हे उसका मेहनताना देने मे क्या तकलीफ है शासन कल्पना करे कि इन अर्धशासकीय कर्मचारियो के बिना त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था जिसपर हर सरकार गर्व करती है और जिसके द्वारा लगभग 18 विभागो का संचालन किया जाता है , अगर एकबारगी छोड़ दे और साथ ही नैतिकता के आधार.पर या इन्ही छोडें कर्मचारियों के बाहूबल के बल पर कोई भी इन विभागों के काम को ना करे ना नये लोगो की भर्ती हो तो त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था का क्या होगा और यह भी सनद रहे कि ऐसा हो चुका है। शिक्षाकर्मियों ने चुनाव के ऐन वक्त पर हड़ताल की थी और.शासन के आग्रह पर भी वे नही आये। बच्चों की परीक्षाएं सर पर थी और शिक्षक हड़ताल पर थे उस समय अनेक लोग ऐसे थे जो विद्यादान करना चाह रहे थे पर ढाई लाख शिक्षाकर्मियों से बैर मोल लेने की हिम्मत किसी मे नही थी और आखिर शासन को कुछ शर्तों के साथ शिक्षाकर्मियों को केवल वापस.ही नही लेना पडा़ था बल्कि उनका वेतनमान बढाना भी पडा़ था।

यहां फिल्म मेरीकॉम के एक संवाद की याद आती है। किसी को इतना मत डराओ कि उसका डर ही खत्म हो जाये। इसका रूपांतरण कुछ ऐसा होगा कि किसी को इतना मत तड़पाया जाये कि तड़पने की शक्ति खत्म होकर विद्रोह पर उतारू हो जाये।

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