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अमेरिका करेगा अब रूस संग हाथ मिला अफगान में प्रहार; ऐसे करेगा आतंकियों का काम तमाम

 वाशिंगटन 
तालिबान राज की वापसी के बाद भेल ही अफगानिस्तान से अमेरिका चला गया हो, मगर वह अफगान की धरती पर मौजूद आतंकियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ने वाला है। रिपोर्ट की मानें तो अमेरिका अफगानिस्तान में आतंकवाद विरोधी अभियानों को अंजाम देने के लिए रूस से भी हाथ मिलाने को तैयार है। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में काउंटर टेरर ऑपरेशन केलिए अमेरका रूसी बेस का इस्तेमाल करेगा और इसके लिए वह बातचीत कर रहा है। 

बुधवार को सीनेटरों के साथ सुनवाई के दौरान पेंटागन के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि अमेरिका उन देशों के साथ बातचीत कर रहा है जो अफगानिस्तान की सीमा पर भविष्य में होने वाले आतंकवाद विरोधी अभियानों को लेकर अमेरिकी सेना को तालिबान-नियंत्रित देश में अधिक आसानी से सर्वेक्षण करने और लक्ष्य पर हमला करने की अनुमति देगा। जहां से अमेरिका अफगान में आतंक विरोधी अभियानों को अंजाम देगा, उन ठिकानों में रूस द्वारा संचालित बेस भी शामिल हैं। इसकी सूचना पोलिटिको ने दी। 

पोलिटिको के अनुसार, बंद दरवाजों के पीछे सांसदों को जानकारी देते हुए अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन और ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष मार्क मिले ने ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और अन्य देशों की सरकारों के साथ होने वाली चर्चाओं के बारे में खुलासा किया। यूएस सेंट्रल कमांड (CENTCOM) कमांडर केनेथ मैकेंजी ने सैन्य विमानों के प्रकार और लॉन्चिंग पॉइंट्स का विवरण दिया, जिनका उपयोग तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान में लक्ष्यों (आतंकियों) के खिलाफ हमले शुरू करने के लिए किया जा सकता है। बता दें कि अमेरिका के शीर्ष जनरलों ने अफगान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद पहली बार सीनेट के समक्ष गवाही दी।
 
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पिछले साल तालिबान के साथ हुए दोहा समझौते के तहत अमेरिका ने 31 अगस्त को अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी पूरी की। इससे पहले, सार्वजनिक गवाही के दौरान मिले ने जोर देकर कहा कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को चेतावनी दी थी कि अफगानिस्तान से जल्दबाजी में वापसी से पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और देश की सुरक्षा के लिए जोखिम बढ़ सकता है। मिले ने कहा कि हमने अनुमान लगाया था कि त्वरित वापसी से क्षेत्रीय अस्थिरता, पाकिस्तान की सुरक्षा और उसके परमाणु शस्त्रागार के जोखिम बढ़ जाएंगे। 

हालांकि, तालिबान ने 20 साल तक अमेरिकी सैन्य दबाव को कैसे झेला, इसकी जांच की जरूरत पर जोर देते हुए जनरल ने कहा कि हमें आतंकियों को पनाह देने वाले पाकिस्तान की भूमिका की पूरी तरह से जांच करने की जरूरत है। बता दें कि 15 अगस्त को तालिबान ने पूरी तरह से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था।