Udhyog Hakikat

बेदी ने किया अपनी किताब द सरदार ऑफ स्पिन में कई खुलासे

नई दिल्ली
भारत के पूर्व कप्तान और अपने समय के दिग्गज स्पिन गेंदबाज बिशन सिंह बेदी ने एक बार पाकिस्तान के क्रिकेटरों को आमंत्रित उनके लिए खाना बनाया था। उन्होंने जहीर अब्बास, जावेद मियादाद, मुदस्सर नजर और दूसरे क्रिकेटरों को ऑस्ट्रेलिया में आमंत्रित किया और 25 मेहमानों के लिए स्वादिष्ट खाना बनाया। बेदी ने इस बाद का जिक्र अपनी नई स्पेशल किताब द सरदार ऑफ स्पिन: "ए सेलिब्रेशन ऑफ द ऑर्ट एंड बिशन सिंह बेदी" में इसका जिक्र किया है। 25 सितंबर को उन्होंने अपने 75वें जन्मदिन पर इस विशेष पुस्तक को लॉन्च किया।

विशेष पुस्तक – "द सरदार ऑफ स्पिन: ए सेलिब्रेशन ऑफ द आर्ट एंड ऑफ बिशन सिंह बेदी"- में कपिल देव की प्रस्तावना, सुनील गावस्कर, ईएएस प्रसन्ना और फारूख इंजीनियर के संदेश और उनकी बेटी नेहा बेदी का खास योगदान है। इसके अलावा सचिन तेंदुलकर, भगवत चंद्रशेखर, वेंकट सुंदरम, रामचंद्र गुहा, अनिल कुंबले, ग्रेग चैपल और कई अन्य खिलाड़ियों का भी योगदान रहा है।

अपने लेख "बिश: टेकिंग अस फ्रॉम क्लब क्लास टू वर्ल्ड क्लास" में, पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर वेंकट सुंदरम अन्य बातों के अलावा बेदी की पाक विशेषता का उल्लेख करते हैं। वह लिखते हैं ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया के बर्नी में चककीली धूप और गर्म दोपहर थी, जब फोन की घंटी बजी। बिशन सिंह बेदी फोन कर रहे थे, उन्होंने मुझसे कहा, कि पाकिस्तान की टीम की टीम तस्मानिया के खिलाफ मैच खेलने के लिए लाउंसेस्टन में होगी और वह उन्हें रात के भोजन के लिए आमंत्रित करना चाहेंगे। 1990 के दशक में वेंकट सुंदरम भारतीय टीम के मैनेजर थे।

वेंकट सुंदरम ने कहा मुझे बेदी का यह आइडिया काफी अच्छा लगा लेकिन उन्होंने पूछा कि वह उनकी मदद कैसे कर सकते हैं। बेदी ने कहा कि वह 70 किमी दूर था हम लॉन्सेस्टन में अपने दोस्त के घर पर मिलेंगे जहां कुछ बर्तन और सामग्री होंगे, हम सभी अपनी खाना बनाने की प्रतिभा दिखाएंगे। बेदी की हमेशा से ही खाना पकाने में अधिक रुचि रही है, और मुझे विश्वास था, उनके द्वारा बनाया जाने वाला खाना अधिक स्वादिष्ट होगा।

वेंकट आगे लिखते हैं कि यहां हम तीन परिवार थे लेकिन यह सबके लिए मुश्किल था। पांच घंटे से अधिक समय तक काटना, धोना, मैरीनेट करना, फ्राई करना, स्टीम देना, सम्मिश्रण करना। कुल मिलाकर बर्तन और पैन 25 मेहमानों का खाना पकाने के लिए पर्याप्त नहीं थे इसलिए एक ही पकवान को दो या तीन बार तैयार करना पड़ता था।