भोपाल
नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सवर्णों की राजनीतिक राह कठिन हो गई है। उन्हें महज 37 प्रतिशत ही सीटों पर टिकट मिल सकेंगे। इसमें सबसे ज्यादा ब्राह्मण, कायस्थ, ठाकुर, बनिया जाति से आने वाले लोगों को टिकट के लिए खासी जद्दोजहद करना होगी, टिकट नहीं मिलने की स्थिति में उनके आगे बढ़ने की राजनीतिक राह कठिन हो जाएगी।
पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर प्रदेश में चली सियासत के बाद प्रदेश की यह तस्वीर उभर कर सामने आई है। ओबीसी सियासत के चलते भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने वादा किया है कि वे अपने-अपने दल की ओर से पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद दोनों ही दलों को 14 प्रतिशत आरक्षण देने की बाध्यता हो चुकी है। यानि प्रदेश में लगभग 50 प्रतिशत सीटें ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हो चुकी है। इसके बाद बचे हुई 50 प्रतिशत सीटों में से 13 प्रतिशत इन दोनों दलों को अपने वादे के अनुसार पिछड़ा वर्ग के लोगों को टिकट देना होंगे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद दोनों ही दल अपनी ओर से अलग से आरक्षण देने को लेकर फिलहाल कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।
माना जा रहा है कि पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में दोनों ही दलों की ओर से अनारक्षित सीटों पर भी ओबीसी को टिकट दिए जाएंगे। इस तरह दोनों ही दल अपने वादे अनुसार 27 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी को दे सकते हैं। यानि प्रदेश में लगभग 63 प्रतिशत सीटें सवर्णों से दूर हो जाएगी। ऐसे में उन्हें सिर्फ 37 प्रतिशत सीटों पर ही टिकट लेकर संतोष करना होगा। जबकि 50 प्रतिशत अनारक्षित सीटों में से सभी पर सवर्ण नेता टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। ऐसे में इनमें से कई को ओबीसी के कारण झटका लग सकता है।