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कांग्रेस का सियासी संग्राम राजस्थान में, विधायकों के इस्तीफों की संख्या और वैधानिकता पर संशय बरकरार

जयपुर
राजस्थान में कांग्रेस का सियासी संग्राम अभी थमा नहीं है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमे विधायकों को अपने-अपने पक्ष में लामबंद करने में जुटे हैं। उम्मीद है कि गहलोत के इस्तीफे की पेशकश पर फैसला कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद होगा। उधर विधायक दल की बैठक में नहीं जाकर समानांतर बैठक करने और विधानसभा अध्यक्ष डॉ.सी.पी.जोशी को इस्तीफे सौंपने वाले विधायकों के बारे में अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। विधानसभा अध्यक्ष ने इस संबंध में अब तक कोई निर्णय नहीं किया है।

इस्तीफों की संख्या और वैधानिकता को लेकर संशय बरकरार
विधानसभा अध्यक्ष की चुप्पी के बीच इस्तीफों की संख्या और वैधानिकता को लेकर संशय बरकरार है। गहलोत खेमा 102 विधायकों के समर्थन और 92 विधायकों द्वारा इस्तीफे दिए जाने की बात कह रहा है। वहीं विधानसभा अध्यक्ष के आवास पर जाने वाले नौ विधायकों ने कहा है कि उनसे संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल और मुख्य सचेतक महेश जोशी ने एक कागज पर हस्ताक्षर करवाए थे। लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया, जिस कागज पर उन्होंने हस्ताक्षर किए उसे वे पढ़ नहीं सके थे।

सूत्रों के अनुसार धारीवाल और जोशी ने एक ही कागज पर सभी विधायकों से हस्ताक्षर करवा कर विधानसभा अध्यक्ष को सौंपे थे। कागज पर लिखा था कि हमें विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं। जबकि नियमानुसार इस्तीफा देने के लिए एक तय प्रोफार्मा है। विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष उपस्थित होकर तय प्रोफार्मा में इस्तीफा देने पर स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन इस प्रकरण में कांग्रेस विधायकों ने तय प्रोफार्मा में इस्तीफा नहीं दिया है।

भाजपा न्यायालय में जाने पर विचार करेगी
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि अगले कुछ दिन में भाजपा के वरिष्ठ नेता एकसाथ बैठेंगे और तय करेंगे कि कांग्रेस विधायकों के लंबित इस्तीफों के संबंध में उन्हे न्यायालय जाने की जरूरत है या नहीं । उन्होंने कहा कि अगर हमें न्यायालय में जाना है तो हम हम एक पार्टी के रूप में बैठकर फैसला करेंगे।उन्होंने कहा कि नियमों के अनुसार अगर कोई विधायक विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष इस्तीफा देने की इच्छा व्यक्त करता है तो वह काफी है।

उल्लेखनीय है कि 25 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन पर्यवेक्षक के रूप में जयपुर आए थे। उन्हे विधायक दल की बैठक में गहलोत के स्थान पर नये मुख्यमंत्री के नाम पर विधायकों की राय जाननी थी। सामूहिक बैठक के बाद दोनों पर्यवेक्षकों को एक-एक विधायक से मिलना था। लेकिन गहलोत खेमे को आशंका थी कि दोनों पर्यवेक्षक पायलट को सीएम बनाने का मानस बनाकर आए हैं। ऐसे में गहलोत खेमें के विधायक धारीवाल के आवास पर एकत्रित हुए थे और फिर वहां से विधानसभा अध्यक्ष के घर जाकर इस्तीफे दिए थे। विवाद शुरू होने से पहले माना जा रहा था कि गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे और पायलट को सीएम बनाया जाएगा । हालांकि आलाकमान की इस योजना पर अमल होने से पहले ही विवाद शुरू हो गया ।