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FSSAI का नया फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग नियम, क्या बच्चो को जंक फूड खाने से बचा पाएंगे ?

मुंबई
आपने कभी किसी बिस्किट के पैकेट, कोल्डड्रिंक की बोतल या नमकीन के पैकेट को पीछे से पलट कर देखा है, कि उसमें क्या-क्या सामान डाला गया है, इससे शरीर को कितनी एनर्जी मिलती है, कितना इसमें फैट होता है और कितना इसमें नमक, अगर नहीं तो ये खबर आपके लिए काफी काम की हो सकती है.

देश में खाने-पीने की चीजों के लिए फूड रेग्युलेटर ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण’ (FSSAI) अलग-अलग नियम बनाती है. इन्हीं में से एक है पैक्ड खाने की चीजों पर उसमें इस्तेमाल की गई सामग्री, उसकी एक्सपायरी और उससे शरीर को मिलने वाले पोषण (न्यूट्रिशनल वैल्यू) की जानकारी देना. अभी खाने-पीने की पैक चीजों के पैकेट पर पीछे की तरफ एक सफेद बॉक्स में उससे मिलने वाले पोषण की जानकारी होती है, वहीं इसे बनाने में इस्तेमाल की गई सामग्री और एक्सपायरी की जानकारी अलग से दी जाती है. अब FSSAI चाहता है कि इस जानकारी को पैक खाने की चीजों पर आगे दिया जाए.

FSSAI देश में बच्चों के बीच जंक फूड के बढ़ते उपभोग से चिंतित है. जंक फूड से बच्चों में डायबिटीज और मोटापे की समस्या बढ़ने का डर है. अभी जंक फूड पर जो ‘न्यूट्रिशनल वैल्यू’ का बॉक्स होता है, उसमें 4 जानकारी काफी अहम होती हैं. पहली कि वो खाने की चीज शरीर को कितने कैलोरी की ऊर्जा देगी, दूसरा कि उसमें शर्करा (शुगर) की मात्रा कितनी है, तीसरा उसमें कितना वसा यानी फैट है और चौथा कि उसमें नमक का स्तर क्या है.

FSSAI चाहता है कि इस पूरी जानकारी को आने वाले समय में पैक्ड खाने के लेबल पर सामने की ओर रखा जाए. इसे ही ‘फ्रंट-ऑफ-पैक लेबिलिंग’ पॉलिसी कहा जा रहा है. दुनिया के कई विकसित देशों में ऐसी व्यवस्था है. FSSAI का मानना है कि इससे ग्राहकों को वो क्या खा रहे हैं और वो उनके स्वास्थ्य के लिए कैसा है, इसकी सही जानकारी मिलेगी और वो सही निर्णय ले पाएंगे. लेकिन क्या भारत में ये इतना आसान है?

फूड एंड बेवरेजेस इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञ के. एस. नारायण बताते हैं कि विकसित देशों में पैक्ड खाने की बड़ी पैकेजिंग का इस्तेमाल ज्यादा होता है. ऐसे में उनके फ्रंट पर इस तरह की लेबलिंग करना आसान है. जबकि भारत में पैक्ड फूड का बड़ा मार्केट 5 रुपये और 10 रुपये की पैकेजिंग का है. ऐसे में न्यूट्रिशनल वैल्यू और सामग्री से जुड़ी जानकारी फ्रंट पर देना कंपनियों के लिए मुश्किल होगा. कई खाने की चीजों पर जब ये जानकारी दी जाएगी तो पैकेजिंग का लगभग 80% तक हिस्सा इसी में चला जाएगा.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि FSSAI की ‘फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग’ पॉलिसी अगर लागू हो भी जाती है, तो क्या ये बच्चों को ‘जंक फूड’ से होने वाली समस्या से बचा पाएगी. एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग के वाइस प्रेसिडेंट (रिसर्च) अभिजीत कुंडू का मानना है कि अधिकतर भारतीय पैक्ड फूड को लेकर उतने हेल्थ कॉन्शियस नहीं होते. हम में से खुद कई लोग पैक फूड के पीछे दी गई इन जानकारियों को पढ़कर नहीं देखते, सिवाय एक्सपायरी डेट के. ऐसे में पैकेजिंग में ये बदलाव कितना असर लाएगा ये देखना होगा.

उनका कहना है कि असल में बदलाव ’ग्राहकों का रवैया’ बदलने से आएगा. जब वो इस बात का ख्याल करना शुरू करेंगे कि उनके बच्चे असल में क्या खा रहे हैं. वहीं कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने इस बारे में कदम उठाना शुरू कर दिया है जो उनके वैश्विक परिचालन का हिस्सा है.