अमेरिका में कोरोना से 100 दिनों में हुई एक लाख मौतें,फिर भी 7 करोड़ नागरिक नहीं लगवा रहे वैक्सीन

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  वॉशिंगटन

अमेरिका में कोरोना का कहर थमा नहीं है. यहां अब तक कोरोना से 7 लाख लोगों की मौत हो गई. हालांकि, डेल्टा वेरिएंट का असर जब से कम हुआ है, अस्पतालों ने कुछ राहत की सांस ली है. चौंकाने वाली बात ये है कि अमेरिका में मौत का आंकड़ा 6 लाख से 7 लाख तक पहुंचने में सिर्फ साढ़े तीन महीने लगे. मरने वालों की संख्या बोस्टन की आबादी से ज्यादा है.

अमेरिका में अनवैक्सीनेटेड आबादी में डेल्टा वेरिएंट फैलने की वजह से मरने वालों की संख्या में इजाफा हुआ. अमेरिका में कोरोना से मौत काफी निराशाजनक हैं, खासकर पब्लिक हेल्थ लीडर्स और मेडिकल प्रोफेशनल्स के लिए, क्योंकि अमेरिका में पिछले 6 महीने से कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन उपलब्ध है.

7 करोड़ लोगों को नहीं लगी डोज

इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं कि वैक्सीन लोगों की अस्पताल में भर्ती होने और मौत से रक्षा करता है. इसके बावजूद अमेरिका में 7 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो वैक्सीनेशन के लिए योग्य हैं, फिर भी उन्होंने वैक्सीनेशन की कोई डोज नहीं ली है. इस वजह से इन लोगों में वायरस का डेल्टा वेरिएंट तेजी से फैला. वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोग ऐसे हैं, जो इस पर संदेह जता रहे हैं.

अमेरिका में कोरोना से अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में कमी देखी गई है. सितंबर की शुरुआत में 93000 लोग भर्ती थे, वहीं, अब ये संख्या 75 हजार पर पहुंच गए है. यहां कोरोना के मामले भी हर रोज घट रहे हैं. यहां हर दिन 1,12,000 मामले सामने आ रहे थे. इनमें ढाई हफ्तों में एक तिहाई की गिरावट हुई है. इसके अलावा यहां मृतकों की संख्या में भी कमी आई है. एक हफ्ते में पहले जहां 2000 लोगों की मौत हो रही थी, अब यह संख्या घटकर 1000 रह गई है.

कोरोना के ग्राफ में आई कमी

गर्मियों में कोरोना की कमी की वजह अधिक मास्क पहनने और अधिक लोगों को वैक्सीनेशन लगना बताया जा रहा है. अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ एंथनी फौसी ने कहा, कुछ लोगों को संतोषजनक आंकड़े नजर आ रहे हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं होना चाहिए कि लोग वैक्सीन ना लगवाएं.

उन्होंने  कहा, ये अच्छी बात है कि कोरोना का ग्राफ नीचे जा रहा है. इसका मतलब ये नहीं कि लोग वैक्सीन नहीं लगवाने का तर्क दें. दूसरी ओर, इस बात का भी डर बना हुआ है कि कहीं फ्लू की चपेट में आने वाले लोग भी कोरोना का शिकार न बन जाएं. इससे अस्पतालों पर दबाव बढ़ सकता है.

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