कोरोना काल में गायब हुई मेंथा कारोबार की महक लौटने के कगार पर

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बदायूं
मेंथा कारोबार में बदायूं की धमक विदेशी मंडियों तक थी। धीरे-धीरे यह कारोबार किसानों और व्यापारियों के लिए भी घाटे का सौदा साबित होने लगा। रही सही कसर कोरोना काल ने पूरी कर दी। निर्यात और घरेलू काम दोनों चौपट हो गया। अब यातायात के साधन फिर सुलभ होने लगे तो कारोबार बढ़ने की उम्मीद है।

बदायूं का मेंथा उत्पाद जर्मनी, चीन, कनाडा, जापान, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और रूस आदि देशों में जाता है। लेकिन वैश्विक मंदी का असर निर्यात पर पहुंचा। व्यापारियों का कहना है कि विदेशी बाजारों में मांग कम होने, कृषि उत्पादन पर जीएसटी लागू होने के बाद लाल फीताशाही हावी होने से इस मेंथा कारोबार को नुकसान पहुंचा है। पिछले वर्ष तीन महीने के लॉकडाउन के कारण मेंथा ऑयल का विदेशों के लिए निर्यात नहीं हो सका। इस कारण किसानों को सही कीमतें नहीं मिलीं। इसका असर इस वर्ष भी कारोबार पर दिख रहा है।

बदायूं में मेंथा की तीन प्रजातियों की ज्यादा पैदावार होती है। इनमें शिवालिक, स्पेरिमेंट और तुलसा शामिल हैं। इस बार पिपरमेंट का भी जिले में ज्यादा उत्पादन हुआ है। सितंबर के अंत तक तुलसा का ऑयल भी बाजार में आ जाएगा। शिवालिक और स्पेरिमेंट का उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले कम हुआ है। मेंथा का सीजन मई से सितंबर तक माना जाता है। दरअसल, छोटे व्यापारी इस कारोबार की मुख्य धुरी हैं जो काश्तकारों से मेंथा ऑयल खरीदकर बड़े व्यापारियों को बेचते हैं और बड़े व्यापारी मेंथा ऑयल का विदेशों को निर्यात करते हैं।

कुछ वर्ष से सरकार ने ऐसी व्यवस्था कर दी है कि अगर कोई मेंथा व्यापारी किसान को उनका मेंथा ऑयल खरीदकर भुगतान करता है तो उस भुगतान पर भी टीडीएस देना होता है। किसान जिस कीमत पर ऑयल बेचता है वह पूरी कीमत उसे नहीं मिल पाती। दरअसल, किसान टीडीएस रिफंड नहीं ले पाते। टीडीएस रिफंड के बारे में किसानों को जानकारी ही नहीं है। ऐसे में किसान को ऐसा लगता है कि उसे फसल की सही कीमत नहीं मिली।

जिले में मेंथा की खेती किसी साल कम तो किसी साल ज्यादा हो जाती है। इस साल यह रकबा करीब 11 हजार हेक्टेयर था। उद्यान विभाग के मुताबिक पिछली साल से रकबा पांच सौ हेक्टेयर बढ़ा है। पिछली साल मेंथा तेल के सही दाम किसानों को मिल गए थे, इस बार फसल ज्यादा होने से दाम घटे हुए चल रहे हैं। पिपरमेंट पिछले साल 3200 रुपये किलो तक पहुंचा था, इस बार अधिकतम 2750 रुपये का भाव आया है। शिवालिक पिछले साल 1200 रुपये तक बिका था, जिसका इस बार 900 रुपये ही भाव है।

प्रभारी जिला उद्यान अधिकारी मोहनलाल बताते हैं कि जिले में वर्ष 2010-11 में मेंथा फसल की खेती करने पर सब्सिडी दी गई थी। इसके बाद बंपर पैदावार हुई। इससे पहले एक बार मेंथा तेल के दाम बहुत अच्छे मिले थे। तब गांव-गांव तेल निकालने के प्लांट लगाए गए थे। उसके बाद खेती का रकबा बढ़ा तो रेट में उतना उछाल नहीं आ सका। मेंथा की फसल में करीब 15 पानी लगते हैं। सामान्य किसान इसे करने से इसलिए भी बचते हैं। यह भूजल का दोहन करता है, शायद इसीलिए इस पर सब्सिडी बंद कर दी गई।

जानकारों के मुताबिक इन दिनों जिले के किसान बड़ी संख्या में घूम रहे आवारा पशुओं और बंदरों के उत्पात से दुखी हैं। मेंथा की फसल इस मामले में किसानों को राहत देती है। चौपाया पशु इसे नष्ट नहीं करते हैं। वहीं बंदर अगर फसल तोड़कर डाल भी देते हैं तो वहीं से नए किल्ले फूट जाते हैं और बड़ा नुकसान नहीं होता। जनवरी में फसल बोई जाती है जो अधिकतम 113 दिन में कट जाती है। एक ही बार जड़ लगाने में किसान दो उपज तक ले लेते हैं।

बदायूं में प्रकाश कैमिकल्स समेत कुछ बड़ी फर्मों के दफ्तर मुंबई, दिल्ली आदि शहरों में भी हैं और इनका जुड़ाव देश की दूसरी बड़ी निर्यात फर्मों से है। इस लिहाज से बदायूं, संभल व चंदौसी की इन फर्मों पर खरीदा गया विभिन्न प्रकार का मेंथा ऑयल दिल्ली, मुंबई की फर्मों और गोदामों तक जाता है। वहां से करीब 90 फीसदी ऑयल विदेश भेज दिया जाता है जबकि दस फीसदी ऑयल देश के उन राज्यों में जाता है जहां दवाएं बनाने की बड़ी कंपनियां हैं।

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