20 साल और 3 बार कोशिश: कैसे सरकार इस बार एयर इंडिया की बिक्री करने में हो पाई कामयाब 

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नई दिल्ली
सरकार ने दो दशकों से अधिक समय और तीन प्रयासों के बाद आखिरकार अपनी प्रमुख राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया (Air India) को बेच दिया है। एयर इंडिया अब अपने संस्थापक टाटा समूह (Tata Group) के पास लौट गई है। जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD Tata) ने 1932 में इस विमानन कंपनी की स्थापना की थी और इसका नाम टाटा एयरलाइंस रखा था। 1946 में, टाटा संस के विमानन प्रभाग को एयर इंडिया के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और 1948 में यूरोप के लिए उड़ान सेवाएं शुरू करने के साथ एयर इंडिया इंटरनेशनल को शुरू किया गया था। यह अंतरराष्ट्रीय सेवा भारत में पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी में से एक थी। जिसमें सरकार की 49 प्रतिशत, टाटा की 25 प्रतिशत और जनता की शेष हिस्सेदारी थी। 1953 में, एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया और अगले चार दशकों तक यह भारत के घरेलू विमानन क्षेत्र पर राज करती रही। लेकिन 1994-95 में निजी कंपनियों के लिए विमानन क्षेत्र के खुलने और निजी कंपनियों द्वारा सस्ते टिकटों की पेशकश करने के साथ, एयर इंडिया धीरे-धीरे अपनी बाजार हिस्सेदारी खोनी शुरू कर दी।

पहली बार कब की गई बेचने की कोशिश
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने अपने व्यापक निजीकरण और विनिवेश को बढ़ावा देने की पहल के तहत, 2000-01 में एयर इंडिया में सरकार की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी। टाटा समूह के साथ सिंगापुर एयरलाइंस ने हिस्सेदारी खरीदने में रुचि दिखाई, लेकिन अंततः सिंगापुर एयरलाइंस को मुख्य रूप से निजीकरण के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध के कारण पीछे हटना पड़ा। फलत: विनिवेश योजना पटरी से उतर गई।

कांग्रेस कार्यकाल में नहीं हुई कोई कोशिश
वर्ष 2004 से 2014 के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने 10 वर्षों में एयर इंडिया सहित किसी भी निजीकरण के एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाया। पिछली संप्रग सरकार ने 2012 में एयर इंडिया को पटरी पर लाने की योजना के साथ-साथ वित्तीय पुनर्गठन योजना (एफआरपी) को मंजूरी दी थी। 2007-08 में इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय के बाद से एयर इंडिया को हर साल नुकसान उठाना पड़ा।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार 2014 में सत्ता में आने के बाद केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (सीपीएसई) के निजीकरण के प्रयास शुरू किए। इसके बाद एयर इंडिया के निजीकरण योजना का घटनाक्रम इस प्रकार है:
जून 2017: आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने एयर इंडिया और उसकी पांच सहायक कंपनियों के रणनीतिक विनिवेश के विचार को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। इसके लिए मंत्रियों की एक समिति यानी ‘एयर इंडिया स्पेसिफिक अल्टरनेट मैकेनिज्म’ (एआईएसएएम) का गठन किया गया।
मार्च 2018: सरकार ने एयर इंडिया में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए निवेशकों से रूचि पत्र आमंत्रित किए। इसके तहत शेष 26 प्रतिशत सरकार के पास होती। इस सौदे में एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100 प्रतिशत और जमीन पर रखरखाव से जुड़ी इकाई एआईएसएटीएस की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी भी शामिल थी। बोली लगाने की आखिरी तारीख 14 मई थी।
मई 2018: एयर इंडिया के लिए कोई बोली प्राप्त नहीं हुई।
जून 2018: सरकार ने तेल की कीमतों में नरमी आने तक एयर इंडिया की बिक्री को धीमा करने का फैसला किया।
जनवरी 2020: सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण के लिए रूचि पत्र (ईओआई) जारी किया। सरकार ने कहा कि वह 100 फीसदी हिस्सेदारी बेच कर एयर इंडिया से पूरी तरह बाहर निकलेगी। इस सौदे में एयर इंडिया एक्सप्रेस का 100 प्रतिशत और एआईएसएटीएस का 50 प्रतिशत भी शामिल होगा। बोली लगाने की अंतिम तिथि 14 दिसंबर तक पांच बार बढ़ाई गई। ईओआई के अनुसार, 31 मार्च, 2019 तक एयरलाइन के कुल 60,074 करोड़ रुपये के कर्ज में से, खरीदार को 23,286.5 करोड़ रुपये का भार अपने ऊपर लेना था।
अक्टूबर 2020: सरकार ने सौदे को आकर्षक बनाया; निवेशकों को एयर इंडिया के कर्ज की राशि के एक हिस्से की अदायगी की शर्त में ढील दी।
दिसंबर 2020: दीपम सचिव ने कहा कि एयर इंडिया के लिए कई बोलियां आई हैं।
मार्च 2021: तत्कालीन नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा: ‘‘…कोई विकल्प नहीं बचा है, हम या तो निजीकरण करेंगे या हम एयरलाइन को बंद कर देंगे। एयर इंडिया के अभी पैसा कमाने के बावजूद हमें हर दिन 20 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।”
अप्रैल 2021: सरकार ने एयर इंडिया के लिए वित्तीय बोलियां आमंत्रित करनी शुरू की। बोली लगाने की अंतिम तिथि 15 सितंबर थी।
सितंबर 2021: टाटा समूह और स्पाइसजेट के प्रवर्तक अजय सिंह ने वित्तीय बोली लगाई।
अक्टूबर 2021: सरकार ने घोषणा की कि टाटा समूह ने एयर इंडिया के लिए 18,000 करोड़ रुपये की सफल बोली लगाई है।
 

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