मां के मूड पर निर्भर करता है बच्चे का बोलना

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बच्चा कब बोलना शुरू करेगा, यह बहुत कुछ इस बात पर तय करता है कि मां का मूड कैसा है। अगर मां बच्चे के जन्म के 2 महीने बाद तक उदास या गुस्से में रहती है, तो बच्चा 6 महीने की उम्र तक आवाजों को समझ नहीं पाता। वह देर से बोलना शुरू करता है।
जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन कॉग्निटिव एंड ब्रेन साइंसेज में हुए शोध में वैज्ञानिकों को पता चला कि बच्चा शुरू से ही आवाजों में फर्क करने लगता है। अगर मां प्रसव के बाद अवसाद से ग्रस्त है तो इसका असर बच्चे के संपूर्ण विकास पर पड़ता है। ऐसे में पिता की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। उसे बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना और उससे बात करना जरूरी हो जाता है, क्योंकि उदास मां की आवाज की टोन एक जैसी रहती है। ऐसे में बच्चा आवाजों में फर्क करना नहीं सीख पाता। आवाजों में फर्क करना बच्चों का वह नैसर्गिक गुण है, जिसे मां का मूड ही विकसित कर पाता है। इन आवाजों के अंतर को समझते-समझते बच्चा शब्दों को समझने लगता है। अगर मां खुश रहे और बच्चे से बात करे तो बच्चा जल्दी भाषा सीखता है। एफ यू बर्लिन में डेवलपमेंट इन चाइल्डहुड एंड एडोलेसेंस की प्रोफेसर गीजा सैद बताती हैं, जब मां खुश रहती है तो आवाज में अलग-अलग टोन होती है। इस अंतर को बच्चा आसानी से समझ लेता है। अगर आवाजों में अंतर की प्रक्रिया में ज्यादा देरी हो जाए तो बच्चा स्पीच डिसआर्डर से ग्रसित हो जाता है। डेवलपमेंट इन चाइल्डहुड एंड एडोलेसेंस की प्रो. गीजा सैद कहती हैं, बच्चों के सामने क्या बोल रहे हैं ध्यान रखें। तब भी जब वे बोलना नहीं जानते हों। वे आवाजों को समझते हैं और आपकी आवाज लंबे समय तक उनके जेहन में रह सकती है। तब भी जब उस आवाज के लिए उनके पास शब्द न हों। ये आवाजें ही बच्चे के लिए आगे चलकर भाषा बन जाती हैं। जैसी आवाजें सुनी होती हैं, वैसी ही भाषा होती जाती है।

बच्चे को बोलने में समस्या तो कराएं इलाज
कंसल्टैंट मनोवैज्ञानिक डॉ नेहा कहती हैं, अगर बच्चों को बोलने में समस्या है तो स्पीच थेरेपिस्ट से उनका इलाज 2 से 4 साल की उम्र के बीच शुरू कराएं। ये उनके गले और जीभ की मांसपेशियों को मजबूत कराते हैं और बोलते समय सांस को नियंत्रित करने के तरीके बताते हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चों के मां-बाप उनके सामने बोल-बोलकर पढ़ें और उन्हें भी प्रेरित करें।

इसके साथ ही अपने बच्चों से बात करते रहें। वे ठीक से जवाब न दे पा रहे हों तब भी। आप जितना बात करेंगे, वे बोलने को प्रेरित होंगे। अपने बच्चों से बात करने का समय तय करें। उन्हें सवाल पूछने के लिए प्रेरित करें। संगीत सुनने, गाना गाने और नर्सरी की कविताएं सुनने-सुनाने का भी वक्त निकालें। वे बोलने की कोशिश करने लगेंगे।

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