नई दिल्ली।
चीन में शून्य कोरोना नीति के चलते भारत की सोलर मॉड्यूल और उससे जुड़ी दूसरी सप्लाई फिर से बाधित हो गई है। केयर रेटिंग की रिपोर्ट के मुताबिक इन समस्याओं से यहां के सोलर पावर से जुड़े कारोबारियों की लागत भी बढ़ती जा रही है और क्षमता भी प्रभावित हो रही है। आंकड़ों के मुताबिक देश में सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाने में 65 फीसदी हिस्सा सोलर मॉड्यूल का होता है। इसमें बड़ा हिस्सा हम आयात करते हैं। देश में केवल इसकी 20 फीसदी क्षमता का ही उत्पादन हो पाता है। इसके लिए भारत की निर्भरता बड़े पैमाने पर चीन पर है। मौजूदा समय में पिछले कुछ वर्षों में अलग-अलग सोलर मॉड्यूल की कीमत में देश में 35 तक इजाफा देखने को मिला है। इसके साथ ही इसमें इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के दाम भी कोरोना संकट के बाद टूटी सप्लाई चेन की वजह से बड़े पैमाने पर बढ़े थे और अभी तक उस पैमाने पर घटने नहीं शुरू हुए। हालांकि भारत में इस दिशा में काम होना शुरू हो गया है, लेकिन इसका असर दिखने में लंबा समय लग सकता है।
बकाया का बोझ
केयर एज के डायरेक्टर सुधीर कुमार ने हिन्दुस्तान को बताया कि बढ़ती लागत के अलावा डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियां का बकाया बड़े पैमाने पर राज्य सरकारों के ऊपर लंबे समय से लंबित है। पेमेंट न मिलने की वजह से भी कंपनियों की मुश्किलें बढ़ती लागत के दौर में और बढ़ गई हैं। इस समस्या का भी जल्द सुधार नहीं किया गया तो कंपनियों की माली हालत और बिगड़ जाएगी। इससे सरकार की सोलर पावर की तरफ तेजी से आगे बढ़ने की मुहिम को झटका लग सकता है।
बढ़ रही है क्षमता
केयर रेटिंग के मुताबिक मॉड्यूल की कीमतों में बढ़त से डेवलपर्स के लिए प्रोजेक्ट पर फायदा घटता जा रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में बिजली के दाम भी बढ़ सकते हैं। आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च, 2022 तक देश में 54 गीगा वॉट की स्थापित सौर क्षमता है। इसके अलावा देश में वित्त वर्ष 2016 से 2022 के दौरान कुल नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिष्ठानों में औसतन 17 फीसदी की वृद्धि हुई है।