जयपुर
राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत सुविधाए देने के मामले में न्यायालय की अवमानना झेल रही गहलोत सरकार ने बीच की गली निकाली है। गहलोत सरकार पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को कोर्ट के आदेश से पहले बैक डेट से पूर्व सीएम की हैसियत से सुविधाए देगी। गहलोत सरकार ने वरिष्ठ विधायक एवं पूर्व सीएम की हैसियत से वसुंधरा राजे को सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-13 आवंटित किया था। बैक डेट से आवास आवंटित करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के पास फाइल भेजी है। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को निर्णय लेना है। सीपी जोशी की स्वीकृति मिलने के बाद गहलोत सरकार पर न्यायालय की अवमानना का मामला खारिज हो जाएगा। हाईकोर्ट में पिछली सुनवाई 20 दिसंबर को थी, लेकिन केस सूचीबद्ध नहीं होने के कारण मामले की सुनवाई नहीं हो सकी। राजस्थान हाईकोर्ट ने 4 सितंबर 2019 को फैसला सुनाते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास के लिए अपात्र माना था। कोर्ट के आदेश के बाद से ही गहलोत सरकार पर न्यायालय की अवमानना का मामला चल रहा है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कोर्ट के फैसले के बाद गहलोत सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाए देने के नियमों में संशोधन किया है।
सत्ता खोने के बाद भी बंगला नंबर-13 पर काबिज है पूर्व सीएम राजे
दरअसल, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर 13 में सीएम रहते हुए रह रहीं है। सत्ता खोने के बाद इसी आवास पर काबिज है। क्योंकि गहलोत सरकार ने नियमों मे संशोधन कर वसुंधरा राजे के आवास को विधानसभा की आवास समिति में डाल दिया था। सीएम नहीं रहने के बावजूद वसुंधरा राजे को सिविल लाइंस में बड़ा बंगला आवंटित करने का मामला हाईकोर्ट में पहुंचा था। राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास के लिए अपात्र माना। लेकिन गहलोत सरकार ने वसुंधरा राजे को वरिष्ठ विधायक बताते हुए विधानसभा की आवास समिति के माध्यम से आवास बरकरार रखने का निर्णय लिया। पूर्व सीएम की हैसियत से सिविल लाइंस स्थिता बंगला नंबर 13 आवंटित किया कर दिया था। गहलोत सरकार राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास देने के लिए राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन विधेयक लाई थी। इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर आजावीन सरकारी बंगले देने का प्रावधान किया गया था। राजस्थान हाइकोर्ट ने इसे मनमाना बताया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ गहलोत सरकार ने 6 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जिसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया।