तालिबान पर पाकिस्तानी समाज में दरार, जानिए इस्लामिक संगठनों से ‘गृहयुद्ध’ का खतरा कैसे मंडराया

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 इस्लामाबाद
पाकिस्तान की राजनीति में शक्तिशाली इस्लामी गुट अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता देने के लिए सरकार पर भारी दबाव डाल रहे हैं। जिसकी वजह से प्रधानमंत्री इमरान खान काफी टेंशन में आ चुके हैं। पाकिस्तान की इस्लामिक पार्टियों के पास ना सिर्फ जनता का बड़ा जनाधार रहता है, बल्कि ये संगठन किसी भी वक्त देश में गृहयुद्ध भड़काने की स्थिति में रहते हैं। जिसका उदाहरण इसी साल तहरीक-ए-लब्बैक पेश कर चुका है, जब एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक पाकिस्तान गृहयुद्ध की आग में जलता रहा है। ऐसे में तालिबान को लेकर पाकिस्तान का समाज दो हिस्सों में बंट गया है। एक हिस्सा जो तालिबान का कट्टर समर्थक है, तो वहीं एक हिस्सा ऐसा भी है, जो तालिबान के खिलाफ खड़ा हो रहा है। 

तालिबान के समर्थन में इस्लामिक पार्टियां पाकिस्तान की इस्लामिक राजनीतिक दल, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई) के प्रमुख फजलुर रहमान ने मांग की है कि, इस्लामाबाद अफगानिस्तान में धार्मिक तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता दे। फजलुर रहमान, पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली मौलवियों में से एक हैं, और देश के विपक्षी दलों के सबसे बड़े गठबंधन, पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के प्रमुख नेता भी हैं। पाकिस्तान के अंदर फजलुर रहमान का एक बड़ा समर्थक वर्ग तो है ही, इसके साथ ही देश के धार्मिक और राजनीतिक हलकों में उनका काफी प्रभाव है। 

फजलुर रहमान की धमकी चिंता क्यों? पाकिस्तान में करीब 36 हजार इस्लामिक मदरसों का संचालन किया जाता है, जिनमें से 18 हजार से ज्यादा मदरसों में देवबंदी विचारधारा की शिक्षा दी जाती है, जो सिर्फ और सिर्फ इस्लामिक कानून के पालन करने पर जोर देता है। अफगान तालिबान और फजलुर रहमान, दोनों देवबंदी विचारधारा का पालन करते हैं, और तालिबान अधिकारियों और पैदल सैनिकों ने समान रूप से इन मदरसों में अध्ययन किया है, जिनमें से कुछ मदरसे फजलुर रहमान के संगठन जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआईय) के ही हैं। हालांकि, तालिबान अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हासिल करने के लिए हर पैंतरे को आजमा रहा है, लेकिन कोई भी देश उसे मान्यता देने के लिए तैयार नहीं है। वहीं, तालिबान की सरकार के कई मंत्री अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी सूची में भी हैं।
 

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