बढ़ेगी तकरार या एक होगा यादव परिवार? मुलायम सिंह के निधन के बाद क्या करेंगे अखिलेश और शिवपाल

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नई दिल्ली।
 मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के बीच इन दिनों एक सवाल मंडरा रहा है कि क्या अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच तालमेल होगा या फिर उनका संबंध अब और खराब हो जाएगा। लोगों को संबंध खराब होने का संदेह इसलिए है क्योंकि परिवार के मुखिया अब नहीं रहे। मुलायम सिंह की हालत बिगड़ने पर अखिलेश और शिवपाल दोनों को कई मौकों पर एक साथ देखा गया। जब नेताजी को इस महीने की शुरुआत में आईसीयू में शिफ्ट किया गया था तो कई राजनीतिक दलों के नेता उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करने के लिए अस्पताल पहुंचे थे। अस्पताल में पहले से अखिलेश, शिवपाल और राम गोपाल यादव मौजूद रहते थे। सपा ने ट्विटर पर ऐसी कई तस्वीरें साझा की जिनमें तीनों नेताओं को एक साथ अस्पताल में देखा गया।

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद दोनों उनके पार्थिव शरीर के साथ उनके गांव सैफई गए। अगले दिन जब शव को अंतिम दर्शन के लिए सैफई मेला मैदान में ले जाया जा रहा था, तो अखिलेश, शिवपाल और आदित्य शव को ले जा रहे ट्रक पर थे। पूरा यादव परिवार मंच पर एक साथ खड़ा था। एक समय शिवपाल ने अखिलेश के कंधे पर हाथ रखा और उन्हें सांत्वना दी। उस समय सपा अध्यक्ष काफी भावुक नजर आ रहे थे।

मंच पर जब सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मुलायम सिंह के पार्थिव शरीर पर चढ़ाने के लिए राम गोपाल यादव को पुष्पांजलि दी, तो उन्होंने मौर्य को पास में खड़े शिवपाल यादव को भी यह देने के लिए कहा। इसके बाद रामगोपाल और शिवपाल ने मिलकर पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण किया। सैफई में जब पत्रकारों ने बुधवार को शिवपाल से पूछा कि क्या यह उनके और अखिलेश के बीच एक नई शुरुआत होगी तो उन्होंने कहा, "यह समय सही नहीं है। सही समय आने पर देखा जाएगा।'' इसके बाद पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या वह समाजवादी पार्टी के संरक्षक की भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं तो शिवपाल ने दोहराया, "यह निर्णय लेने का समय नहीं है।"

अखिलेश-शिवपाल का कड़वा संघर्ष
2012 में मुलायम सिंह यादव द्वारा अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद 2016 में सपा पर नियंत्रण के लिए दोनों के बीच संघर्ष देखने को मिला। 13 सितंबर 2016 को अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल को सभी मंत्रिस्तरीय विभागों से वंचित कर दिया। मुलायम सिंह ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इसके बाद पारिवारिक संघर्ष और तेज हो गया। जनवरी 2017 में जैसे ही अखिलेश ने सपा की कमान संभाली राम गोपाल ने तुरंत सीएम के समर्थन का ऐलान किया।

2017 के चुनाव के बाद शिवपाल ने सपा से नाता तोड़ लिया और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया। अनुभवी नेता ने इस साल की शुरुआत में विधानसभा चुनावों के लिए अपने भतीजे के साथ हाथ मिलाया और जसवंतनगर निर्वाचन क्षेत्र से सपा के चुनाव चिह्न पर जीत हासिल की। लेकिन पार्टी के प्रदर्शन को लेकर अखिलेश और उनके चाचा के बीच पुरानी दरार फिर से उभर आई। शिवपाल ने सपा पर उन्हें गठबंधन और विधायक दल की बैठकों से बाहर करने का आरोप लगाया। इसके जवाब में सपा प्रमुख ने अपने चाचा को याद दिलाया कि वह पार्टी के सदस्य नहीं थे और उन्हें अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी।

मंगलवार को मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देने सैफई जाने वालों में जसवंत नगर निवासी पहलवान सिंह यादव भी शामिल थे। पहलवान सिंह ने कहा, "अगर अखिलेश और शिवपाल अपने मतभेदों को भुलाकर एक बार फिर साथ आ जाते हैं तो इससे सपा को फायदा होगा। पार्टी भविष्य के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करेगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो भाजपा और अन्य दल उनके मतभेदों का फायदा उठाते रहेंगे। पार्टी का भविष्य अखिलेश और शिवपाल दोनों पर निर्भर है।''

 

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