Lata Mangeshkar: 28 सितंबर, 1929 को इंदौर के सिख मोहल्ले हुआ था जन्म, उनके नाम से जाना जाता है ये मोहल्ला…

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इंदौर
Lata Mangeshkar: कोरोना ने देश को सबसे बड़ा आघात पहुंचाया। महामारी भारत के सबसे अमूल्य रत्न को निगल गई।  भारत की सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर 29 दिन बाद कोरोना से जंग हार कर दुनिया को विदा कह गईं। उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। लता जी के निधन पर 2 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई है। उनकी पार्थिव देह अंतिम दर्शनों के लिए शिवाजी पार्क में रखी गई है।  लता के निधन पर भारत ही नहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत दुनियाभर के देशों से शोक संदेश आ रहे हैं। अंग्रेजी संगीतकारों ने भी लता जी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है।

28 सितंबर, 1929 को इंदौर के सिख मोहल्ले में लता मंगेशकर का जन्म हुआ था। जिस चॉलनुमा घर में वे पैदा हुई थीं, वह उस समय वाघ साहब के बाड़े के रूप में जाना जाता था। सात साल की उम्र तक वे इंदौर में इसी घर में रहीं। इसके बाद उनका परिवार महाराष्ट्र चला गया। लता जी के इंदौर से जाने के बाद इस घर को एक मुस्लिम परिवार ने खरीदा। यह परिवार कुछ साल यहां रहा और फिर इस घर को बलवंत सिंह को बेच दिया। बलवंत सिंह लंबे समय तक इस घर में रहा। बाद में उन्होंने इसे नितिन मेहता के परिवार को बेच दिया। मेहता परिवार ने घर के बाहरी हिस्से में कपड़े का शोरूम खोल लिया है। मेहता परिवार ने सबसे पहले घर का कायाकल्प करवाया। यह परिवार लताजी की देवी की तरह पूजा करता है। शोरूम खोलने से पहले वे हर दिन उनका आशीर्वाद लेते हैं। उन्होंने शोरूम के एक हिस्से में लताजी का म्यूरल बनवाया है।

डॉक्टर्स ने बताया, मल्टी आॅर्गन फेल होने से निधन
डॉक्टर प्रतीत समदानी और उनकी टीम की देखरेख में लता मंगेशकर का इलाज चल रहा था। मंगेशकर की हालत में सुधार हुआ था और वेंटिलेटर हटा दिया गया था, लेकिन शनिवार को उनका स्वास्थ्य फिर बिगड़ गया था। लता मंगेशकर का इलाज करने वाले डॉक्टर प्रतीत समदानी ने जानकारी दी है कि उनका निधन मल्टी आॅर्गन फेल्योर के कारण हुआ है। उनके अनुसार लता मंगेशकर ने रविवार सुबह 8:12 बजे अंतिम सांस ली। उन्हें जनवरी में निमोनिया और कोरोना संक्रमण हुआ था।

लता दीदी से बहुत स्नेह मिला: PM मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि मुझे लता दीदी से हमेशा बहुत स्नेह मिला। मैं उनके साथ की गई बातों को हमेशा याद रखूंगा। मैं और देशवासी लता दीदी के निधन पर शोक व्यक्त करते हैं। मैंने उनके परिवार से बात की और अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं। ओम शांति…।

आपकी पूजा करते रहेंगे
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लता जी के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने ट्वीट किया स्वरकोकिला भारत रत्न लता दीदी के जाने से आज एक महायुग का अंत हो गया। उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता। उनके जाने से यह देश सूना है। हर घर सूना है। संगीत सूना है। हम लता दीदी को गीत संगीत की देवी मानकर हमेशा उनकी पूजा करते रहेंगे।

2001 में मिला था भारत रत्न
लता मंगेशकर को 2001 में संगीत की दुनिया में उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। इससे पहले भी उन्हें कई सम्मान दिए गए, जिसमें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के सम्मान भी शामिल हैं। कम ही लोग जानते हैं कि लता जी गायिका के साथ संगीतकार भी थीं और उनका अपना फिल्म प्रोडक्शन भी था, जिसके बैनर तले बनी फिल्म ‘लेकिन’ थी, इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट गायिका का नेशनल अवॉर्ड भी मिला था, 61 साल की उम्र में गाने के लिए नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली वे एकमात्र गायिका रहीं। इसके अलावा भी फिल्म ‘लेकिन’ को 5 और नेशनल अवॉर्ड मिले थे।

संगीत की दुनिया के 8 सुरमयी दशक
92 साल की लता जी ने 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाए, जो किसी भी गायक के लिए एक रिकॉर्ड है। करीब 1000 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज दी। 1960 से 2000 तक एक दौर था, जब लता मंगेशकर की आवाज के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थीं। उनकी आवाज गानों के हिट होने की गारंटी हुआ करती थी। सन 2000 के बाद से उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया और कुछ चुनिंदा फिल्मों में ही गाने गाए। उनका आखिरी गाना 2015 में आई फिल्म डुन्नो वाय में था। करीब 80 साल से संगीत की दुनिया में सक्रिय लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। 13 साल की छोटी उम्र में 1942 से उन्होंने गाना शुरू कर दिया था।

घर के कर्मचारी के पॉजिटिव आने के बाद आर्इं कोरोना की चपेट में
लता जी लगभग दो साल से घर से नहीं निकली थीं। वे कभी-कभी सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस के लिए संदेश देती थीं। बढ़ती उम्र और गिरती सेहत के कारण वे अपने कमरे में ही ज्यादा समय गुजारती थीं। उनके घर के एक स्टाफ मेंबर की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उनका टेस्ट कराया गया था। 8 जनवरी को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।

लता मंगेशकर के नाम से जाना जाता है मुहल्ला
लता मंगेशकर ने जब संगीत की दुनिया में कदम रखा तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इंदौर की गलियों में जन्मी और यहां की गलियों में पली बड़ी बच्ची (Lata Mangeshkar special memories) संगीत की दुनिया की सरताज बन जाएंगी. इंदौर का नाम भी लता मंगेशकर की वजह से पूरे देश और विदेशों में मशहूर है. उनका जन्म सिख मोहल्ले में हुआ था यह क्षेत्र लता मंगेशकर के नाम से ही जाना जाता है. लता मंगेशकर के चाहने वाले उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं.
इंदौर से जुड़ी हैं लता मंगेशकर की यादें

पढ़ने में थी होशियार
लता मंगेशकर के पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग ने बताया कि लता मंगेशकर और उनका परिवार सालों तक यहां पर रहा है. शुरुआती बचपन इंदौर में ही गुजरा और वह इन्हीं गलियों में खेलते हुए वह बढ़ी हुई और फिर अपने परिवार के साथ मुंबई चली गईं थीं, इसके बाद कभी लौट कर नहीं आईं थी. लेकिन जो भी समय उन्होंने शहर में गुजारा वह इंदौर के लिए यादगार बन गया था. जिस क्षेत्र में वह रहती थीं, वह इलाका उनके नाम से ही जाना जाता है यह इंदौर के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है. बुजुर्गों ने बताया कि लता मंगेशकर बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थी. वहीं आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि उनका परिवार भी काफी अच्छा था और सभी से मिलकर रहते थे.

जिला कोर्ट में लता मंगेशकर का स्मारक बनाने की मांग
जैसे ही इंदौर वासियों को लता मंगेशकर के निधन की खबर मिली वह मायूस हो गए. सब उनकी सलामती और अच्छे स्वास्थ्य के लिए दुआ कर रहे थे. जिस मकान में लता मंगेशकर का जन्म हुआ उस मकान में रहने वाले जितेंद्र सिंह का कहना है कि लता जी के प्रति आज भी आदर है और उनके निधन की खबर से वह शोक में हैं. लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि लता जी की याद में इंदौर के जिला कोर्ट में एक स्मारक बनाया जाए.

इंदौर में कई तरह के विकास कार्य करवाए
जिस मकान में लता मंगेशकर का जन्म हुआ उसे उन्होंने दो हिस्सों में बेच दिया था. मकान में आज एक तरफ सिख परिवार रहता है तो दूसरी ओर कपड़ा गारमेंट का एक बड़ा शोरूम खुल चुका है. इंदौर के लिए लता मंगेशकर ने कई तरह के विकास कार्य करवाए थे. उन्हीं में से एक कार्य इंदौर के लोहा मंडी क्षेत्र में माई मंगेशकर सभागृह है, उसके बारे में बताया जाता है कि उसका निर्माण लता मंगेशकर के भाई ने लता मंगेशकर की मां की याद में करवाया था.

 

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